This is not an original creation by me. It is my favorite hindi poem written in 'veer' ras... from the movie Gulaal, the soundtrack that accompanies it in the movie makes it even more engaging.... here it is
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
जो मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्व शक्तिमान है
कृष्ण की पुकार है
ये भागवद का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो
या पांडवों की नीड़ हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है
जीत की हवास नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं
तो मौत से भी क्यों डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचंड ....
हो दया का भाव
या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या की पूरे भाल पर
चढ़ा रहे विजय का लाल
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या
मृदंग केसरी हो या
की केसरी हो ताल तुम ये सोच लो!
जिस कवी की कल्पना में
ज़िन्दगी हो प्रेम की
तो उस कवी को आज तुम नकार दो
भीगती नसों में आज
फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बखार दो
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचंड ....
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
जो मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्व शक्तिमान है
कृष्ण की पुकार है
ये भागवद का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो
या पांडवों की नीड़ हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है
जीत की हवास नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं
तो मौत से भी क्यों डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचंड ....
हो दया का भाव
या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या की पूरे भाल पर
चढ़ा रहे विजय का लाल
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या
मृदंग केसरी हो या
की केसरी हो ताल तुम ये सोच लो!
जिस कवी की कल्पना में
ज़िन्दगी हो प्रेम की
तो उस कवी को आज तुम नकार दो
भीगती नसों में आज
फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बखार दो
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचंड ....
Good one
ReplyDeleteJosh bhar deta ha padhte hi
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