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Showing posts from 2014

Aadhi Raat ka Safar

कभी मौका मिले तो एक बार, आधी रात के बाद सैर पर ज़रूर निकलना  भटकना यहां वहाँ, या ढूंढना, अपने ख्यालों में उन खोये हुए ख्यालों को | सन्नाटे में वो सुनाई देंगे कुछ अच्छे से, अँधेरा भी मदत करेगा, ध्यान भटकने न देगा सुनना उनकी भी फरयाद, करना अपने कल को फिर याद | चलते चलते जो थक जाओ तो ठहर जाना, किसी पेड़ के पास बैठ जाना और फिर देखना ये रात का शेहर कैसे करवटें बदलता है | हवा कैसे चुपके से गाती है कैसे गाड़ियां अपने मालिकों को घर ले जाती हैं  जब वो आखरी गाडी निकल जाए तो फिर खुद पर आ जाना, उठा जाना और चल पड़ना | बीच में कोई चहेता गीत गुनगुनाना  तो चुटकियों के ताल खुद ही लग जाएंगे  बादलों को पसंद आये साज़ तो मस्ती में वो भी बरस जाएंगे | कभी मौका मिले तोह एक बार, आधी रात के बाद सैर पर ज़रूर निकलना  कभी कभी यूं ही भटकने से भी मंज़िलें मिल जायती हैं |

The Old Apartment

I was in the mood this evening, the mood for a solitary walk. So I walked in the breeze before the rains, to my old apartment not very far. I got there, I got up, walked right up to a door too familiar. I rang the bell once or twice, and waited for it to open. But the door was not opened, neither by someone present, nor by me from the past, so I peeked in -  in the all absorbing dark. I stood there, all alone, and so stood the apartment. Finally, we wished each other good-luck and then I walked back to the present. Whilst walking back, I saw some memories on the road, sweet and comforting as they were, it dawned on me that they were frozen gold. Part sad, part resolute, I continued my solitary walk, I need to focus more on what is, than what's not to make more memories, with whom I can talk.

The Memory Lane

Eyes swept down a road this evening, a bit farther than usual. I could see the canopy, of clouds, trees and people, gliding, swaying and moving towards the past. It seemed as if it were inviting me, the sun a happier shade of orange at that end, as if the past were full, of only of the joys that I remembered, and the forgotten never existed.  The wind too liked that direction, for it carried my thoughts there. It seemed perfect, that past of mine, - a perfect story woven by an author of skill, a tussle between tragic interludes and merrier moments. A friendly tug pulled me back to the present, and reminded me that my past in all of it's glory, was nothing but a memory that I have, and that road too, would take me somewhere in the future, like all roads always do.

Mind and Shelves

The mind categorizes... it sorts... things, events, emotions... people. The short, the tall, the slim , the plump.. it puts everything and everyone..  on shelves.. different shelves.. The mind categorizes... it segregates the friends.. identifies the foes... based on transactions it terms as love and hate.. It is a universe of oxymoron.. it judges those who judge.. and hates those who have malice with fury.. The mind categorizes... it also loves those whom it likes... switches off the rationale.. always conscious of it,  yet not relenting to it in the case of a certain few And yet.. The mind categorizes.

मैं, कल और आज

इस फाल्गुन मास में, उन अदृश्य उँगलियों की गुद-गुदाहट है, जो यादों को भी टटोलती है, लबों को भी।  मैं आज में चलता हूँ, और कल में खो जाता हूँ , आज में सोकर मैं कल में जग जाता हूँ।  और मुझे दिखता हूँ मैं, दुनिया से अपिरिचित हूँ थोड़ा-सा मैं , स्वयं में ही व्यस्त हूँ थोड़ा-सा मैं।   पलटकर भी मैं स्वयं को ही खड़ा पाता हूँ, मैं जो कि  अब उसी अनजान दुनिया का हिस्सा हूँ, मैं जो कि  थोडा सा खोया हुआ किस्सा हूँ।  फिर मैं खुद का हाथ थामकर, दिखलाता हूँ खुद को ये दुनिया खुद की नज़रों से, थोड़ी बातें फिर से सीखता हूँ, जानता हूँ।  तभी किसी आवाज़ से आखें खुलती हैं, और मैं सच्चाइयों से घिर जाता हूँ, बीते हुए कल के कल को मैं आज पाता हूँ। 

यादों में

रात के खामोश अंधेरों में भी, सितारों से रौशन आसमान हुआ करते थे.…  भीड़ों कि भाग दौड़ के बीच खड़े, फूलों से सजे गुलिस्तां हुआ करते थे…  धड़कनो के बीच छुपे सन्नाटे को, सुनकर समझने वाले मेज़बान हुआ कर थे…  कभी सच्चाई तो कभी पागलपन से, मन को बहलाने वाले कुछ दोस्त हुआ करते थे…