इस बार कुछ यूँ हुआ....
उम्मीद जाग गयी,
चंद मिसालों से,
ख्वाब उभर उठे
पिघलते सवालों से...
एक फ़रिश्ता बिना आहट के,
दबे पाँव कहीं दूर चला गया,
यादों से वो मुझे हंसा गया,
उन्ही यादों से वो रुला गया..
दिल पे दस्तक हुई,
तो दरवाज़े खोल दिए,
कुछ मीठे बोल इन कानों में,
एक फ़रिश्ते ने धीरे से घोल दिए..
जीवन का ये संतुलन,
देखकर कुछ देर ठहर गया,
इसे विधि का विधान मान कर,
फिर मैं आगे बढ़ गया..
इस बार कुछ यूँ हुआ...
खुद ही को छोड़ चुका था
एक मोड़ पर,
इस मोड़ पर,
खुद ही से मैं मिल गया..
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