दिल की वादियों में,
मोहब्बत के सुर राम जाएँ तो कैसा हो?
गुस्ताख़ मैं हूँ, गुस्ताख़ तुम हो,
गुस्ताख़ियों से भरा एक समा कैसा हो?
होठों की जुस्तुजू में,
ये ज़िन्दगी सिमट जाए तो कैसा हो?
एक हंसी की चाहत में,
ये दिल धड़क जाए तो कैसा हो?
अल्फाजों में जो बयाँ न हो सके,
इस क़दर हो प्यार तो कैसा हो?
तनह्यिओं की ख़ामोशी में,
दिल पे दस्तक पड़ जाए तो कैसा हो?
दुखों और तनाव की धुप में,
मासूमियत की छाया मिल जाए तो कैसा हो?
इन अजनबी राहों में चलते हुए,
एक प्यारा हमसफ़र मिल जाए तो कैसा हो?
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