ज़िन्दगी की दौड़ में
भागते रहो तो क्यों?
ये भला कि वो बुरा
सोचते रहो तो क्यों?
इस असीम दौड़ की
रेखा तुम्हे क्या दिख रही?
या तुम्हारे माथे पर
चिंता है कुछ लिख रही?
क्या दो पल रुकने से
दिल सेहेम सा जाता है?
या की खुद से मिलने से
मन तुम्हारा घबराता है?
दिल की सुनो तो कुछ सिक्के
तुम भी खो जाओगे
मन की व्यथा में झाँक कर
भी भला क्या पाओगे?
ये दौड़ है
कुछ अजीब सी
इसमें जीत भी
कुछ गरीब सी
कुछ पाने पर भी
बहुत पीछे छूट जाएगा
घडा है बना तो मिट्टी का
आखिर ये टूट जाएगा
ज़िन्दगी की दौड़ में
भागते रहो तो क्यों?
ये भला कि वो बुरा
सोचते रहो तो क्यों?
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