इन बादलों की पनघट ने छींट चंद बरसाए तो थे आखों पे थिरक कर वो आंसू बन आये तो थे । हंसी को तलाशते ये आसूं बेह रहे मदहोश-से हैं ज़िन्दगी को छोड़ ज़िन्दगी की आस में मेरे ख्वाब कुछ खामोश-से हैं । चलता हूँ जिस रास्ते पर हर पहर उस पर आज भी खडा हूँ जाना कहाँ है ये पता है फिर भी ज़िद पर अड़ा हूँ । ज़िद है तो हवाओं का रुख बदलकर बादबानों में जोश भरने की जिद है तो बुलंद उम्मीदों से अपने ख्वाबों में शब्द भरने की । ये ख्वाब ही तो हैं जो खामोशियों को ललकारते हैं ये ख्वाब ही तो हैं जो कल को पुकारते हैं । उस कल के रास्ते पर कई रंजिशों से जूझना अभी बाकी है उन खामोश ख्वाबों से कई सवाल पूछने अभी बाकी हैं