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Showing posts from June, 2014

Aadhi Raat ka Safar

कभी मौका मिले तो एक बार, आधी रात के बाद सैर पर ज़रूर निकलना  भटकना यहां वहाँ, या ढूंढना, अपने ख्यालों में उन खोये हुए ख्यालों को | सन्नाटे में वो सुनाई देंगे कुछ अच्छे से, अँधेरा भी मदत करेगा, ध्यान भटकने न देगा सुनना उनकी भी फरयाद, करना अपने कल को फिर याद | चलते चलते जो थक जाओ तो ठहर जाना, किसी पेड़ के पास बैठ जाना और फिर देखना ये रात का शेहर कैसे करवटें बदलता है | हवा कैसे चुपके से गाती है कैसे गाड़ियां अपने मालिकों को घर ले जाती हैं  जब वो आखरी गाडी निकल जाए तो फिर खुद पर आ जाना, उठा जाना और चल पड़ना | बीच में कोई चहेता गीत गुनगुनाना  तो चुटकियों के ताल खुद ही लग जाएंगे  बादलों को पसंद आये साज़ तो मस्ती में वो भी बरस जाएंगे | कभी मौका मिले तोह एक बार, आधी रात के बाद सैर पर ज़रूर निकलना  कभी कभी यूं ही भटकने से भी मंज़िलें मिल जायती हैं |

The Old Apartment

I was in the mood this evening, the mood for a solitary walk. So I walked in the breeze before the rains, to my old apartment not very far. I got there, I got up, walked right up to a door too familiar. I rang the bell once or twice, and waited for it to open. But the door was not opened, neither by someone present, nor by me from the past, so I peeked in -  in the all absorbing dark. I stood there, all alone, and so stood the apartment. Finally, we wished each other good-luck and then I walked back to the present. Whilst walking back, I saw some memories on the road, sweet and comforting as they were, it dawned on me that they were frozen gold. Part sad, part resolute, I continued my solitary walk, I need to focus more on what is, than what's not to make more memories, with whom I can talk.