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तो उनमे से किसी की खुशबू मिली,
मिले चंद सूखे गुलाब के फूल,
जमी थी उन पर गुज़री यादों की धूल...
आखरी पन्ने को,
जब पलटा बिना ऐतियात के,
तो गिरी कुछ पुरानी तसवीरें,
बिखर गया यूँ मेरी मेज़ पर वो गुजरा ज़माना....
लिखे थे उन पन्नो में कुछ गानों के बोल,
कुछ जो थे फ़साने प्यार के,
कुछ ज़िन्दगी की गहराईयों में झांकते हुए,
बयाँ कर रहे थे हर पहलू का मोल...
कितना सादा था वो ज़माना,
फिर भी सादगी से भरा हुआ...
कितना खाली खाली सा था वो आशियाना,
फिर भी ज़िन्दगी से भरा हुआ....
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